रिस्क क्या है?
मेरे लिए रिस्क का मतलब सपने देखना है और उनमें पूरा यकीन करना है। मैं जिस परिवार से हूं उसमें कोई क्रिएटिव बैकग्राउंड नहीं था, ना ही मेरा परिवार व्यापारी था। इसी माहौल में मैंने कुछ फिल्में देखी और प्रभावित हो गया। एक्टर बनने का सपना देख लिया। ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी रिस्क थी।
ग्रेजुएशन हो चुका था और मेरे करीबी लोग कह रहे थे कि थिएटर करो लेकिन एक नौकरी भी होना चाहिए। मैंने उनकी बात नहीं मानी। मैं सिर्फ अपने सपने में कूदना चाहता था और मैं सपनों के पीछे काम करने लगा। जिंदगी में कुछ ऐसे मौके भी आते हैं जब आपको कदम पीछे हटाने होते हैं, उनके लिए भी हमेशा तैयार रहना चाहिए।
यहां रिस्क के मायने बदल जाते हैं। एक वक्त था जब मैं क्रिकेट खेला करता था। मेरा चयन सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए हुआ था। 26 साथी चुने गए थे जिन्हें एक कैम्प में जाना था। उस कैम्प में जाने के लिए मैं एक मामूली रकम का इंतजाम नहीं कर पाया।
यह वो लम्हा था जब मैंने विचार शुरू किया कि मुझे खेल जारी रखना चाहिए या नहीं। मैंने फैसला लिया कि खेल छोड़ देना चाहिए क्योंकि मुझे इसमें किसी ना किसी सहयोग की जरूरत होगी। मैं नहीं जानता था कि आगे क्या करूंगा फिर भी मैंने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया था।
जिंदगी आपको सिखाती है। किसी की राय से थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं लेकिन सीख नहीं सकते। तमाम किताबें है, तमाम तरह के जानकार हैं जो आपके जीवन को पटरी पर ला सकते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है। आप जो खुद-ब-खुद सीखते हैं वो उससे बड़ी सीख किसी और से नहीं मिल सकती है।
मैंने खुद देखा कि मेरे पिता ने मौत को कितनी आसानी से लिया, इससे ही मैं मौत के अपने डर को हटा पाया। जिस दिन वो नहीं रहे, उस दिन सुबह से वो बड़े आराम से थे, मुझे वो पूरा दिन याद है। लोग उन्हें कह रहे थे कि अस्पताल चलें, लेकिन हालातों के कारण उन्होंने अस्पताल जाना नहीं चुना था।
उन्होंने चुन लिया था कि अब इसे जारी रखने का मतलब नहीं है, इसलिए दुनिया से विदा होना बेहतर है। मुझे मौत का डर बचपन से रहा, मैं सोचता था कि कैसे ये सब छूटेगा, जिंदगी की उलझनें, वगैरह। लेकिन जितनी आसानी से मेरे पिता ने फैसला लिया, उससे मैंने मौत को आसानी से लेना सीखा। मौत का डर मुझसे कुछ तरह दूर हुआ।
बदलाव के बारे में –
सिस्टम में बदलाव एक से नहीं होगा, सबकी कोशिश से होगा। जब तक लोगों को सवाल पूछना नहीं आएगा, बदलाव नहीं होगा। जब तक लोग सिस्टम में शामिल नहीं होंगे, सिस्टम भी लोगों को नहीं पूछेगा। ऐसे में सिस्टम केवल उनका गुलाम बनकर रहेगा जो उसे चला रहे हैं।
धर्म के बारे में –
एक चीज होती है ‘चाइनीज विस्पर’, कान में कही बात कान-दर-कान बदलती जाती है और सच से दूर हो जाती है। जो बातें हजारों साल पहले कही गई थीं, वो अब कितनी बदल गई हैं, क्या पता। कोई कुछ भी कहता है और आप उसे मानने लगते हैं। हर चीज को पुनः परिभाषित करना जरूरी है। धर्म के बारे में चिंतन इसलिए जरूरी है क्योंकि इसे भगवान से जोड़ दिया गया है। धर्म को अनुशासन बना दिया है।’
– 2014 में इरफ़ान खान आईफा के मंच पर