महात्मा बुद्ध के प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग, गौतम बुद्ध की लघु कथा, गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी (mahatma buddha ke prerak prasang, gautama buddha story in hindi)
दुनिया को अपने विचारो से नया रास्ता दिखाने वाले भगवान गौतम बुद्ध भारत के महान दार्शनिक, धर्मगुरु, समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। शाक्यों के राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी जो कोली वन्श की थी उनका उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी) ने किया था।
इस लेख में हम आपको भगवान गौतम बुद्ध से जुड़े कुछ प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग बतायेंगे।
विषय सूची
महात्मा बुद्ध के प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग
प्रेरक प्रसंग 1. दोषमुक्त
एक बार भगवान् बुद्ध पावा नगरी पहुँचे। वहाँ मल्ला समुदाय के लोगों ने उनका स्वागत किया। चुंद ने अपने आम्रवन में विश्राम करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे तथागत ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
चुंद के घर भगवान् तथा भिक्षु संघ ने भोजन भी किया। जो भोजन तथागत के लिए परोसा गया, उसमें सूअर का मांस भी था। उसे खाते ही तथागत अतिसार से पीड़ित हो गए और उनकी दबी हुई बीमारी भी उभर आई।
चुंद तथागत को विदा करने इरावती नदी के पार तक आया। सरोवर तट पर आम्रवन में तथागत ने कुछ समय आराम किया और कुशीनारा की ओर चले।
कुछ देर बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य से कहा, “आनंद, लोग चुंद को दोष देंगे कि उनके घर भोजन प्राप्त करने के कारण तथागत अस्वस्थ हो गए थे। वस्तुतः ऐसा नहीं है आनंद, चुंद ने जो भी भिक्षा में दिया, सब स्नेह वश ही दिया। इसलिए उसे दोष मत देना। वह दोषमुक्त है ।” तथागत बोले।
प्रेरक प्रसंग 2. वीणा के तार
महात्मा बुद्ध ज्ञान-प्राप्ति के लिए घर-बार छोड़कर तपस्या कर रहे थे। तपस्या में उन्हे छह साल लगे, परंतु उनकी तपस्या सफल नहीं हुई। एक दिन वह वृक्ष के नीचे समाधि में बैठने की कोशिश में थे, परंतु उनका चित्त उद्विग्न था।
तभी कुछ महिलाएँ नगर से लौट रही थीं। वे समवेत स्वर में गीत गा रही थीं। उस गीत के बोल थे- वीणा के तार ढीले मत छोड़ो, ढीला छोड़ने से उनका स्वर सुरीला नहीं निकलेगा, परंतु तार इतने अधिक कसो भी नहीं कि टूट जाएँ।
यह बात सिद्धार्थ को जॅच गई। उन्हें प्रतीत हुआ कि वीणा के तारों के लिए जो बात ठीक है, वह शरीर के लिए भी ठीक होगी। न तो अधिक आहार ठीक है और न ही बहुत न्यून। नियमित मध्यम आहार-विहार से ही योग सिद्ध हो सकता है।
प्रेरक प्रसंग 3. आत्मदीप
महात्मा बुद्ध ने सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, सेवा और लाभ से परिपूर्ण जीवन बिताया। जब वह अंतिम यात्रा निर्वाण के लिए प्रस्तुत हुए, तो उनका प्रिय शिष्य आनद रोने लगा। वह बोला, “तथागत, आप क्यों जा रहे है? आपके निर्वाण के बाद हमें कौन सहारा देगा?”
महात्मा बुद्ध ने कहा, “अभी तक तुमने मुझसे रोशनी ली है। भविष्य में तुम आत्मदीप बनकर विचरण करो। तुम अपनी ही शरण में जाओ। किसी दूसरे सहारा मत ढूँढो। केवल सच्चे धर्म को अपना दीपक बनाओ। केवल सच्चे मार्ग की शरण लो।
महात्मा बुद्ध ने यह भी सीख दी थी, “भिक्षुओ! बहुजनों के हितों के लिए, बहुजनों के सुख के लिए और लोक पर दया करने के लिए विचरण करो। एक साथ दो मत जाओ। अकेले ही जाओ । स्वतः ज्योति लो। दूसरों को रोशनी दो।”
प्रेरक प्रसंग 4. बचाने वाला बड़ा
भगवान् बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। एक दिन वह बगीचे में टहल रहे थे कि अचानक एक हंस उड़ता हुआ जमीन पर आ गिरा। सिद्धार्थ ने देखा कि हंस को तीर लगा हुआ है। कष्ट से तड़पते हंस का दुःख सिद्धार्थ से नहीं देखा गया।
उन्होंने हंस को उठाकर तीर निकाला। इतने में उनका चचेरा भाई देवदत्त आया और बोला, “भाई. यह शिकार मेरा है. इसे मुझे दे दो !”“भाई मैं इसे नहीं दूंगा” सिद्धार्थ ने जवाब दिया, “क्यों ?” देवदत्त बोला। देवदत्त ने सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन से शिकायत की और कहा, “इस हंस पर मेरा हक है। तीर मारकर मैने इसे गिराया है।
“सिद्धार्थ ने पिताजी से कहा, “आप ही फैसला कीजिए कि एक उड़ते हुए बेकसूर हंस पर तीर चलाने का उसे क्या अधिकार था? इसे क्यों घायल कर दिया? मुझसे इस दुःखी प्राणी का कष्ट नहीं देखा गया, इसलिए मैंने तीर निकाल कर इसका उपचार किया और इसके प्राण बचाए।”
राजा शुद्धोदन ने दोनों की बात सुनकर फैसला दिया और कहा, “हंस पर अधिकार सिद्धार्थ का है, क्योंकि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।”
प्रेरक प्रसंग 5. मृत्यु
भगवान् बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक नगर श्रावस्ती में गाँव-गाँव जाकर विचरण कर उपदेश दे रहे थे। एक गाँव में एक औरत अपने परिवार के साथ रहती थी। अचानक उसका बच्चा बहुत ज्यादा बीमार हो गया और उसकी मृत्यु हो गई।
उसकी मृत्यु को वह औरत सहन न कर पाई और मृत बच्चे को लेकर इधर-उधर सभी के पास गई कि कोई बच्चे को जीवित कर दे। गाँव से बाहर भगवान् बुद्ध लोगों को प्रवचन दे रहे थे।
जब उस औरत को पता चला कि भगवान् बुद्ध आए हुए हैं, तो वह अपने मृत बच्चे को लेकर भगवान् के पास गई और रोते-बिलखते हुए महात्मा बुद्ध के चरणों में बालक को रखकर बोली, “भगवन ! मेरे एकमात्र लाल को जीवित कर दो।”
भगवान् बुद्ध ने कहा, “मैं तुम्हारे इस पुत्र को जीवित कर दूंगा, लेकिन मुझे तुम ऐसे घर से एक मुट्ठी पीली सरसों के दाने ला दो, जिस घर में कभी मृत्यु नही हुई हो” उस औरत ने घर-घर जाकर पूछा। उसकी यह सुनकर आँखें खुल गईं कि प्रत्येक परिवार में किसी न किसी सदस्य की मौत हुई है।
प्रेरक प्रसंग 6. कर्म का संदेश
भगवान् बुद्ध के एक शिष्य विनायक को जरूरत से ज्यादा बोलने की आदत थी। इसी आदत की वजह से वह खूब जोर-जोर से बोलकर भीड़ एकत्र करते और फिर धर्मोपदेश देते। श्रद्धालुओं ने तथागत से शिकायत की।
एक दिन तथागत ने विनायक को बुलाया और बातों-बातों में बड़े प्रेम से पूछा, “भिक्षु, अगर कोई ग्वाला सड़क पर निकली गायों को गिनता रहे, तो क्या वह उनका स्वामी बन जाएगा ““नहीं, भंते ! सिर्फ गायों को गिनने वाला उनका स्वामी कैसे हो सकता है?
उनका वास्तविक स्वामी तो वह होता है जो उनकी देखभाल, सेवा में जुटा रहता है। “तथागत बोले, “तो तात ! धर्म को जीभ से नहीं, बल्कि जीवन से बोलना सिखाओ और प्रजा की सेवा-साधना में तन्मयता पूर्वक जुटे रहकर उन्हें धर्म संदेश दो। “विनायक ने कहा, “आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। अब वाणी से नहीं, कर्म से धम्म संदेश दूंगा।”
प्रेरक प्रसंग 7. प्रसन्नता का रहस्य
भगवान् बुद्ध के पास एक बार राजा श्रेणिक आए। उन्हें यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि भिक्षुओं के चेहरे आनंद से दमक रहे थे और एक तरफ बैठे राजकुमारों के चेहरों पर सारी सुविधाओं के बावजूद भी उदासी छाई हुई थी।
राजा श्रेणिक ने काफी सोचा कि भिक्षुओं की दिनचर्या काफी कठिन होती है। फिर भी उन्हें यह रहस्य समझ में नहीं आया कि भिक्षुओं के चेहरे इतने खिले हुए क्यों हैं? राजा को उत्तरन मिला, तो उन्होंने भगवान् बुद्ध से पूछा।
भगवान् बुद्ध ने कहा, “राजन, मेरे भिक्षुओं ने स्वभाव ही ऐसा बमा लिया है कि उन पर कैसी भी मुसीबत क्यों न आए, उनकी मानसिक शांति भंग नहीं होती। वे हर हाल में खुश रहते हैं।
ऐसा इसलिए होता है कि वे यह नहीं देखते कि बीतेदिनों में क्या हुआ, न वे यह सोचते हैं कि भविष्य में क्या होगा? उनकी निगाहें वर्तमान पर रहती हैं। आज जो कुछ जिस रूप में है, वे उसे उसी रूप में देखते हैं। उनकी प्रसन्नता का यही रहस्य है।
प्रेरक प्रसंग 8. संकल्प
भगवान् बुद्ध से एक बार उनके एक शिष्य ने पूछा, “भगवन् ! चट्टान से शक्तिशाली क्या होता है?” भगवान् बुद्ध ने उत्तर दिया “लाहा वह चट्टान को भी तोड़ देता है” भगवन, लोहे से अधिक शक्ति किसमें है?” अग्नि में।” भगवान् ने जवाब दिया।” और अग्नि से अधिक बल किसमें है?“
पानी में वह अग्नि को भी बुझा देता है ।” “भगवन्, कृपा करके बताएँ कि पानी से अधिक शक्ति किसमें है?” “संकल्प में इससे अधिक शक्ति और किसी में भी नहीं है, वत्स।” कहकर भगवान् बुद्ध मुस्करा पड़े। शिष्य यह सुनकर उनके पैरों का स्पर्श करते हुए बोला, “बस, भगवन्, मुझेयही शक्ति प्राप्त करनी है।